त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥ चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।। त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥ तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महं डेरा।। लाय सजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।। आप जलंधर असुर संहारा। सुयश https://shivchalisas.com